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रीढ़ की हड्डी में 32 गुटके होते हैं. सर के पिछले हिस्से से रीढ़ निकल कर कुल्हे में tail bon तक जाती है. इस रीढ़ के गुटकों को इस प्रकार बांटा गया है. सर से पीठ तक 7 गुटके सर्वाइकल (cervical), पीठ से कमर तक 12 गुटके थोरेसिक (THORACIC), कमर से कुल्हे की हड्डी के उपरी भाग तक लंबर (Lumber) 5 गुटके एवं सेक्रुम (Secrum) 5 गुटके और अंत में टेल बोन के 3 गुटके कोक्की कहलाते हैं. सर्वाइकल प्रोब्लम में अक्सर सर्वाइकल के C3 एवं C4 में समस्या होती है. इस समस्या के होने से गर्दन से सर तक दर्द होता है. कंधों में जकडन हो सकती है और दर्द हाथों में उतर सकता है.
साइटिका अक्सर L1 से L5 और S1 से S5 गुटकों के मध्य गैप कम होने से दर्द के साथ शुरू होता है फिर यह दर्द रीढ़ के गुटकों के स्थान पर कुल्हे और टांग की बड़ी हड्डी के जोड़ में शिफ्ट हो जाता है. इसके बाद धीरे धीरे दर्द कुल्हे के जॉइंट से पैरों की अँगुलियों तक फैलता है. सही इलाज के आभाव में धीरे- धीरे पैरों की अंगुलियाँ सुन्न होने लगती हैं. यह सुन्नता बाद में पूरे पैर में फ़ैल जाती है. यह अवस्था पैरालिसिस के समान होती है. एलोपैथी में इसका उपचार दर्द निवारक (Pain Killer) दवाएं हैं एवं इसका निदान कठिन है. हमारी चिकित्सा पद्धति में एक्यूप्रेशर लेने के बाद तत्काल राहत महसूस होती है एवं मरीज अपनी दैनिक दिनचर्या में लग सकता है.
यह साइटिका की प्रारंभिक अवस्था है जब दर्द लम्बर्स और सेक्रम तक सीमित हो. इसमें बैठ कर उठने, लेट कर उठने, बैठते समय कमर में जकडन और दर्द होता है. इसका इलाज साइटिका की ही तरह होता है. बेहतर होगा कि स्लिप डिस्क और साइटिका का इलाज प्रारंभिक अवस्था में ही करवा लें क्योंकि धीरे धीरे दर्द में वृद्धि होती जाती है एवं जब कूल्हे के जोड़ से पैरों की अँगुलियों तक दर्द होने लगता है तब वह गंभीर अवस्था होती है. यह दर्द इतना तेज होता है कि रोगी के द्वारा पैर हिलाना भी मुश्किल हो जाता है. दर्द के बहुत दिनों तक बने रहने से उस अंग की मांस-पेशियाँ भी कमजोर होने लगती हैं.
इन अंगों में दर्द का मुख्य कारण मांसपेशियों में सख्ती, हड्डियों के जोड़ों (Joints) में सूजन और किन्हीं कारणों से जोड़ों पर श्वेत रक्त कोशिकाओं का जमाव होता है. एलोपैथी में इसका मुख्य इलाज दर्द निवारक दवाएं हैं. हमारी चिकित्सा पद्धति में एक्यूप्रेशर और होम्योपैथी से इस रोग को पूर्ण रूप से ठीक किया जाता है.
एक्यूप्रेशर एवं होम्योपैथी के द्वारा इसके इलाज से पूर्ण लाभ होता है. इसके साथ वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में प्राकृतिक चिकित्सा को शामिल किया जाता है. इस पद्धति से 10 से 45 दिनों में पथरी निकल जाती है. पथरी निकल जाने के बाद फिर से बनना भी बंद हो जाती है.
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